The Last Murder - 1 in Hindi Crime Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | The Last Murder - 1

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The Last Murder - 1

The Last Murder

… कुछ लोग किताबें पढ़कर मर्डर करते हैं ।

अभिलेख द्विवेदी

आपस की बातें!

कितनी कहानियाँ होती हैं जो कहीं किसी की ज़िन्दगी में घट तो जाती हैं लेकिन ना कहीं बयां होती है और ना ही कहीं पढ़ने या सुनने को मिलती हैं । इसका मतलब यह भी नहीं कि इस उपन्यास की कहानी का वास्तविकता से कोई संबंध है । लेकिन यह उपन्यास हर लेखक और उसके पाठक की वास्तविकता से जुड़ी है ।

एक लेखक अपनी कहानियों को लिख कर पाठक से जुड़ तो जाता है लेकिन वो जुड़ाव उसके लिए कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाज़ा कोई नहीं लगा सकता । एक पाठक जब किसी उपन्यास या कहानी को पढ़ता है तो वो उसमें खुद को कहीं-न-कहीं ढूंढता है । लेकिन वो जब उसमें खुद को पा लेता है तो जुड़ाव सिर्फ लेखक से नहीं, उसकी हर आने वाली कहानी से भी हो जाता है क्योंकि उसे उन्हीं कहानियों में, फिर से खुद को पाने का इंतज़ार रहता है ।

यहाँ लेखक की कहानी में कातिल खुद को नहीं ढूंढता है लेकिन लेखक के बनाये हुए किरदार को ढूंढ कर उसका मर्डर कर देता है! वजह क्या है? अब आप पढ़ना शुरू करिये और अंत में बताइये कि मेरे इस शार्ट नॉवेल से आप कितना जुड़े!

*****

Chapter 1:

सुबह की सड़कें जब भीगी हो तो खयाल आता है कि रात कहीं बारिश तो नहीं हुई थी या फिर कहीं ओस की वजह से तो ऐसा नहीं हुआ । और ऐसे दोनों हालात आजकल बहुत कम होते हैं क्योंकि अब सड़कें भीगती हैं तो सिर्फ एक ही वजह से… जब कमर्शियल बिल्डिंग अपनी बीते रात की बेतरतीबी को धुलने के बहाने से, सारी बेतरतीबी को सड़कों के हवाले कर देती हैं और सड़कें भींग कर, हमें एक भीगी हुई सुबह का एहसास कराती है । यानी, हर सुबह अपने आप में एक जैसी ही होती है, लेकिन हर किसी की लाइफ में, हर सुबह… एक नए तरीके से आती है ।

आज वो सुबह, संविदा के हिस्से आयी है ।

संविदा, वो नहीं जिसे आपने मेरी पुरानी नॉवेल में पढ़ा था । ये संविदा उससे काफी जुदा है । ये संविदा तो सीनियर कॉपीराइटर है एक एडवर्टाइज़िंग फर्म में जहाँ उसे लिखने के लिए पैसे मिलते हैं । है ना दिलचस्प! सुनने में अच्छा लगता है कि लिखने के लिए पैसे मिलते हैं । लेकिन अक्सर जब लिखने के लिए पैसे मिलते लगते हैं तो दिल से लिखने वाली बात कहीं दब जाती है । तब एक लेखक क्या करता है? आजकल सोशल मीडिया पर क्रांति रचता है लेकिन संविदा के पास इतना टाइम नहीं । उसे अपने करियर और लेखनी से इतना प्यार है कि वो अपना सारा समय कॉपीराइटिंग और क्लाइंट सोल्युशन में लगा देती है ।

“क्या यार संविदा, मुझसे कोई दुश्मनी है क्या? इस वीक तेरे लिखे तीनों स्क्रिप्ट क्लाइंट ने रिजेक्ट कर दिया । ऐसे करेगी तो मेरी जॉब भी जाएगी और तेरा टैलेंट भी संदेह के घेरे में जायेगा ।” काशिफ ने परेशान चेहरे पर भी मुस्कान बिखेरते हुए कहा था ।

काशिफ इसी फर्म में सेल्स प्रोफेशनल है । क्लाइंट की ब्रीफिंग के आधार पर संविदा का काम है कॉपी लिखना और फिर फाइनल प्रोडक्ट, सेल्स वाले उसे क्लाइंट के पास ले जाते हैं, तब रिवेन्यू आता है ।

"अबे चल, खुद ठीक से पिच नहीं करता और हर हर बार मुझे ब्लेम करता है । इससे पहले कितने हुए हैं?" संविदा ने तर्क दिया ।

"काशिफ सही कह रहा है मेरी जान, देख आज मेरे क्लाइंट ने भी रिलीज़ ऑर्डर नहीं दिया और कहा है क्रिएटिव में कुछ फेरबदल करने को ।" प्रशस्ति ने भी अपनी नाराज़गी जताई । प्रशस्ति भी काशिफ की तरह सेल्स में थी ।

"रिटेल क्लाइंट तो वैसे भी चूतिये किस्म के होते हैं । क्रिएटिव की समझ होती नहीं, बस बड़े अक्षरों में उन्हें अपना नाम दिखना चाहिए, वीडियो और ऑडियो में बस उनके नाम का माला जपते दिखना चाहिए । उनको समझा, इतने पैसे में ऐसे ही क्रिएटिव बनते हैं ।" संविदा के पास शायद हर बात की दलील होती है, भले कोई समझे या ना समझे लेकिन उसे पता है कि हार नहीं मानना है, किसी भी शर्त पर ।

वैसे भी छोटे शहर से निकलकर, बड़े शहर में अच्छी नौकरी मिल जाये तो सबसे बड़ी लड़ाई होती है उसे बचाये रखने की । कंपीटिशन में ना भी कोई हो तो मार्किट के चक्कर में नौकरी से हाथ धोने का डर ऐसा रहता है कि बंदा हर कंप्लेन पर एक जवाब तैयार रखता है, क्योंकि उसे पता होता है कि हार नहीं मानना है, किसी भी शर्त पर ।

अभी ये सब चल ही रहा था कि गौरव ने एंट्री मारी । किसी के दिल मे घंटी नहीं बजी क्योंकि गौरव क्रिएटिव हेड है और किसी भी मीडिया या मनोरंजन सेक्टर में सभी जानते हैं कि जब आपके अंदर की क्रिएटिविटी मर जाती है और आपके पास अच्छी बैकिंग होती है तो आप क्रिएटिव हेड बन जाते हैं जहाँ आपका काम है सेल्स वालों के सपोर्ट में क्रिएटिव टीम को लताड़ना । संविदा समझ गयी आज फिर एक बहाना है गौरव के पास उसे लताड़ने का!

ऐसा कुछ माहौल रहता था संविदा के कामकाजी लाइफ का । पारिवारिक भी और प्रोफेशनल भी ।

लेकिन जिस सुबह का ज़िक्र किया है अभी उसकी बात नहीं हुई है । वो सुबह, आज इसलिए खास है क्योंकि संविदा की पहली ऑनलाइन नॉवेल हिट हुई और आज उसी बुक के लिए पहला रीडिंग सेशन होने वाला है । मे-फेयर बुक वर्ल्ड ने उसे ये मौका दिया है । सोशल मीडिया पर तो बातें हो ही रही है, अब ग्राउंड पर भी धूम मचाना है और उसी के लिए संविदा की ये पहली सीढ़ी है ।

संविदा ने एक शार्ट नॉवल लिखा था बिना इस उम्मीद से कि कहीं से भी कोई रिस्पॉन्स आएगा । चूंकि उसने लिंक्डइन पर पढ़ा था कि रोज़ अगर 1000 शब्द लिखना शुरू करो तो महीना खत्म होने तक एक नॉवेल रेडी हो जाएगा । उसने इसका जिक्र अपने ऑफिस कलीग इरा से किया था । उसने भी कहा कि आज़माने में क्या जाता है । हालांकि संविदा को फिर भी बात नहीं जमी थी । वो तो गौरव ने उसे एक दिन लताड़ते हुए आईडिया दे दिया था ।

"सुनो संविदा, तुम कॉपी तो नहीं लिख पा रही हो और हर बार तुम्हें सेल्स वालों की ब्रीफिंग में प्रॉब्लम दिखती है तो एक काम करो, अब से हर सेल्स वालों के साथ हर क्लाइंट के पास जाओ, ब्रीफिंग लो और फिर क्रिएटिव पर काम करो । और अगर इतना सब नहीं हो पायेगा, तो अपने लिए कोई और काम ढूंढ लो । इतनी बड़ी राइटर तो हो नहीं कि तुम जो लिखोगी वो हर कोई पसंद कर लेगा ।"

इसके बाद ही उसे सोशल मीडिया पर एक फ्रेंड जान्ह्वी का पोस्ट दिखा जिसमें एक कंपीटिशन का ज़िक्र था । कंपीटिशन आमजन डॉट कॉम का "राइट टू पब्लिश" था जिसमें कोई भी अपनी एक कहानी या उपन्यास लिखकर उसमें भाग ले सकता था । अभी तक संविदा ने सोशल मीडिया पर बकरपंथी ही की थी लेकिन जब उसे इसके बारे में पता चला तो उसे लगा कि चांस लेना चाहिए । उसे लगा ऐसे भी अपने मन का लिखने का कहीं कोई स्कोप तो है नहीं तो क्यों ना इस मौके को भुनाया जाए । नहीं भी कहीं चर्चा हुई तो कोई तो पढ़ ही लेगा, बस वही काफी होगा और इसी बहाने ऑथर कहलाने का बहाना मिल जाएगा । लागत कुछ है नहीं, कवर डिज़ाइन करना उसे आता ही है, बस रोज़ आकर 1000 शब्द गढ़ने हैं । और फिर वो लग गयी खुद को ऑथर बनाने में । वैसे भी उसने मिलेनिअल पुराण में पढ़ा था कि खालीयुग में अगर आप 15 सेकंड के वीडियो में डबिंग करेंगे तो किसी के भी रोल मॉडल बन सकते हैं, तो उसे लगा इस युग में सब संभव है ।

संविदा को पता था कि आलतू-फालतू की कहानी लिखने से अच्छा है सीरियल मर्डर पर किताब लिखो और उसमें थोड़ा सा इरोटिका भी डाल दो, किताब अपने आप चलेगी । उसने यही किया । किताब का टाइटल रखा "मर्डरिंग सिडक्टिवली" और मेल खाता कवर भी । बस, लोग चटखारे लेते हुए उसके इनबॉक्स और सोशल मीडिया के टाइम लाइन पर लोटने लगे । इसका असर ऑफिस में भी दिखने लगा । सबका नज़रिया बदला और काम करने का तरीका भी बदला । मज़े की बात ये भी थी कि अब क्लाइंट की कहीं से कोई शिकायत नहीं आ रही थी । उन्हीं क्लाइंट में से थे मे-फेयर बुक वर्ल्ड, जिन्होंने उसके किताब के पेपरबैक एडिशन को हाथों-हाथ बिकवाया और बुक रीडिंग सेशन का प्रोमोशनल प्लान बनाया ।

हालांकि, संविदा को तब थोड़ा दुख हुआ था जब उसे "राइट टू पब्लिश" में 2nd रनर-अप के प्राइज से नवाजा गया था, क्योंकि चर्चा देखकर उसे ये लगा था कि वो 2nd यानी 1st रनर-अप तक आएगी । उसे नहीं पता था कि यहाँ भी सेटिंग होती है । जीतने वाली और कोई नहीं जान्ह्वी की मौसेरी बहन की ननद, मांडवी थी क्योंकि जजिंग पैनल में सत्य प्रकाश सचान, तनुश्री राय, अनुपमा गांगुली जैसे दिग्गज राइटर थे जो जान्ह्वी के करीबी थे । 1st रनर-अप वाले ने पैसे लगाकर खुद को बड़ा बना लिया था । संविदा को इस बात की तसल्ली थी कि 3rd आकर भी बुक-स्टोर ने उसकी कद्र की । और उन्होंने उसके साथ 7 किताबों का अनुबंध किया है । एक तरफ से चीज़ें हासिल तो हो रही थी लेकिन पब्लिसिटी का नियम है कि अगर ज़्यादा अटेंशन मिलेगा तो कुछ नेगेटिव चीज़ें भी अटेंशन लेती है ।

जजिंग पैनल वाले, और उनसे तमाम जुड़े लोगों को पता था कि संविदा अब शायद ही रुके । मांडवी को सबसे बड़ा चैलेंज था अपने को आने वाले दिनों में साबित करना । आशुतोष मृणाल जो 2nd आया था, वो इन सब से दूर, सोशल मीडिया पर एक्टिविस्ट बना हुआ था क्योंकि उसे पता था कि रीडरशिप लाना है तो पहले भीड़ लाना ज़रूरी है और भीड़ लाने के लिए कलाकार नहीं, काण्डकार होना ज़रूरी है । और इसमें वो माहिर भी हो रहा था । वक़्त बीतने के बाद भी उसकी वही किताब चर्चा में थी । इधर संविदा अपने बुक रीडिंग की शुरुआत के साथ अगले नॉवेल के लिए भी कांसेप्ट ढूंढने का प्रेशर था और उसपर से कॉपी राइटिंग वाली जॉब को भी बचाए रखना था ।

आज की सुबह इसलिए बहुत खास होने वाली था संविदा के लिए । अभी तक वो ऐसे रीडर से नहीं मिली थी जो सामने से उसके लिखे हुए के लिए कुछ कहे । किंडल या ई-बुक के लिए लोग पहले से ही पैसे फेंक चुके होते हैं, ऐसे में पढ़कर तारीफ करना ऐसा है जैसे अपने पैसे से मौत का सामान लाकर मेहनत कर के ख़ुदकुशी करना, इसलिए लोग फीडबैक देने में हिचकते हैं । मे-फेयर बुक वर्ल्ड के बदौलत ये किताब अब पेपरबैक में आयी तो लोगों का रवैया बदल गया है । काफी लोग आये हैं उसे सुनने के लिए । नहीं, शायद देखने के लिए क्योंकि लेडी राइटर दिखती कैसी है, इसकी मार्किट में बहुत अहमियत होती है । बाकी जैसा भी लिखे, तारीफें कर ही देंगे, वो अलग बात है कि कहानी की तारीफ के नकाब में शक्ल की तारीफें होंगी । खैर, आज की तारीख में पहली बुक रीडिंग के सेशन में 20-25 लोग जुट गए, मतलब दम है इसके कंटेंट में । सब तरफ नज़र दौड़ाकर, शो-रूम मैनेजर ने संविदा को इशारा किया ताकि आगे का कार्यक्रम शुरू हो और इस सुबह को एक अंजाम मिले ।